राजस्थान सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश की 3 नर्सों को पीएचडी पूरी करने के बाद नाम के साथ ‘डॉ.’ लगाने की अनुमति नहीं दी है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में तैनात तीनों नर्सों ने अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ अनुमति मांगी थी। इस मामले पर राजस्थान नर्सेज एसोसिएशन ने नाराजगी जाहिर की है। नाम के साथ ‘डॉ.’ लगाने की अनुमति ना देने के पीछे की वजह भी सामने आई है। आइए जानते हैं पूरा मामला।
राजस्थान स्वास्थ्य विभाग में काम कर रही तीन नर्सों ने अपनी पीएचडी पूरी की। पीएचडी पूरी करने के बाद नर्सों ने अपना नाम के आगे ‘डॉ.’ लगाने के लिए अनुमति मांगी। उनको अनुमति देने से इनकार कर दिया गया। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के निदेशक सुरेश नवल ने 9 फरवरी को एक पत्र जारी कर इस मामले की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि तीन नर्सों ने निदेशालय को प्रस्ताव भेजकर अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ उपाधि का उपयोग करने की अनुमति मांगी, लेकिन प्रशासनिक विभाग द्वारा उपाधि का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी गई है।
क्या हो सकती है वजह
इस मामले पर विभाग की तरफ से कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का मानना है कि नर्सों के नाम के साथ ‘डॉ.’ लगाने से मरीजों में भ्रम की स्थिति पैदा होगी। उनका कहना है कि मरीज मेडिकल डॉक्टर और पीएचडी वाले डॉक्टरों में अंतर समझने में भ्रमित होंगे। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि नर्सों को अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ लगाने की अनुमति नहीं दी गई।
क्या बोला नर्सेज एसोसिएशन
राजस्थान नर्सेज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह शेखावत ने नर्सों को अनुमति ना दिए जाने के फैसले पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस आदेश ने नर्सिंग स्टाफ को हतोत्साहित किया है। उन्होंने कहा कि ऐसे छात्र जो अपने क्षेत्र में शोध के लिए जाते हैं और ज्यादा ज्ञान लेकर आते हैं तो उससे मरीजों को ही फायदा मिलेगा।