नई दिल्ली: भारतीय उद्योग जगत के एक स्तंभ, रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में बुधवार को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। टाटा समूह को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित और मान्यता प्राप्त कंपनी बनाने में रतन टाटा का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को मुंबई के वर्ली श्मशान घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया।
रतन टाटा का पार्थिव शरीर गुरुवार को सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक दक्षिण मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) में रखा गया था, ताकि लोग उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोगों का आगमन हुआ, जिनमें कई दिग्गज राजनेता और उद्योगपति भी शामिल थे।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई
रतन टाटा का अंतिम संस्कार पूरी राजकीय गरिमा के साथ संपन्न हुआ। इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे प्रमुख राजनेता भी उपस्थित थे। इन नेताओं ने रतन टाटा के योगदान को सराहते हुए उन्हें महान नेता और राष्ट्रसेवी बताया।
रतन टाटा के निधन की खबर ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। सोशल मीडिया पर उनके प्रति श्रद्धांजलि संदेशों की बाढ़ आ गई, जिसमें देश-विदेश के तमाम दिग्गज नेताओं, उद्योगपतियों और आम जनता ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
टाटा समूह का स्वर्णिम युग
रतन टाटा ने 1991 में टाटा समूह का नेतृत्व संभाला था, और उनके नेतृत्व में यह समूह नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। उनके कार्यकाल में टाटा समूह ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने कई अहम अधिग्रहण किए, जिनमें जगुआर लैंड रोवर और कोरस जैसे प्रमुख ब्रांड्स शामिल हैं। टाटा नैनो जैसी क्रांतिकारी कार को बाजार में उतारने का श्रेय भी रतन टाटा को जाता है।
रतन टाटा एक दूरदर्शी उद्योगपति थे, जिन्होंने भारत में औद्योगिक विकास को नई दिशा दी। उनकी सोच और नेतृत्व ने टाटा समूह को वैश्विक मंच पर स्थापित किया और उन्हें दुनिया के सबसे सम्मानित व्यवसायियों में से एक बना दिया।
समाज सेवा में भी अग्रणी भूमिका
रतन टाटा न केवल एक सफल उद्योगपति थे, बल्कि समाज सेवा के क्षेत्र में भी उनका बड़ा योगदान था। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम किया। उनकी उदारता और समाज सेवा के प्रति समर्पण ने उन्हें जन-जन का प्रिय बना दिया।
टाटा समूह की विरासत
रतन टाटा के निधन से टाटा समूह और भारतीय उद्योग जगत में एक बड़ा खालीपन पैदा हो गया है। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने न केवल व्यावसायिक ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का भी बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने जीवन में एक ऐसी विरासत छोड़ी है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
रतन टाटा के बारे में
साल 1937 में जन्मे रतन टाटा का पालन-पोषण 1948 में उनके माता-पिता के अलग होने के बाद उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया था।
रतन टाटा साल 1962 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से बी.आर्क की डिग्री प्राप्त की थी। 1962 के अंत में भारत लौटने से पहले उन्होंने लॉस एंजिल्स में जोन्स और इमन्स के साथ कुछ समय काम किया।
2008 में भारत सरकार ने उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, प्रदान किया था। वह 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रिटायर हुए थे।