नई दिल्ली/पोर्ट लुईस: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर मॉरीशस पहुंच गए हैं। मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत किया। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता, व्यापारिक समझौतों और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करने पर चर्चा होगी।
मॉरीशस और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, और पीएम रामगुलाम का भारत से विशेष संबंध है। उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर जिले से मॉरीशस आए थे और उनके परिवार ने मॉरीशस की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी मॉरीशस के साथ विभिन्न विकास परियोजनाओं को लेकर भी चर्चा करेंगे।
मॉरीशस के पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम और भारत का संबंध
प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम का भारत से गहरा नाता है। उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर जिले के हरिगांव से थे। उनके परिवार की जड़ें भारत में रही हैं, और मॉरीशस की आजादी में उनके परिवार की अहम भूमिका रही है। मॉरीशस की राजनीति में रामगुलाम परिवार का दशकों से प्रभाव रहा है और इस परिवार ने मॉरीशस को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने में योगदान दिया है।

रामगुलाम परिवार: भारत से मॉरीशस तक का सफर
मॉरीशस का इतिहास समझे बिना रामगुलाम परिवार की जर्नी को समझना अधूरा होगा। मॉरीशस, जो अफ्रीका महाद्वीप का एक छोटा सा द्वीप देश है, इसकी कुल आबादी लगभग 12 लाख है। इस द्वीप पर औपनिवेशिक शक्तियों का लंबे समय तक शासन रहा। 1715 में फ्रांस ने इस पर कब्जा किया, लेकिन 1803 के युद्ध के बाद ब्रिटेन ने इसे अपने अधीन कर लिया।
1834 से 1924 तक, ब्रिटिश शासकों ने भारत से बड़ी संख्या में मजदूरों को मॉरीशस भेजा। इसी क्रम में 1896 में ‘द हिंदुस्तान’ नामक जहाज से बिहार के भोजपुर जिले के हरिगांव से 18 वर्षीय मोहित रामगुलाम भी मॉरीशस पहुंचे।
रामगुलाम परिवार का मॉरीशस में योगदान
मोहित रामगुलाम के भाई भी बाद में मॉरीशस आ गए। मोहित ने मजदूर के रूप में कार्य करना शुरू किया, लेकिन बाद में वे क्वीन विक्टोरिया सुगर इस्टेट में कार्यरत हो गए। 1898 में उन्होंने बासमती नामक विधवा महिला से विवाह किया, और 1900 में उनके बेटे शिवसागर रामगुलाम का जन्म हुआ।
शिवसागर ने अपने जीवन में संघर्षों का सामना किया। जब वे 12 वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और इंग्लैंड में जाकर शिक्षा ग्रहण की। वहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई नेताओं से मुलाकात की और उनसे प्रेरित होकर अपने देश के मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष का संकल्प लिया।
शिवसागर रामगुलाम: मॉरीशस की आजादी के नायक
1935 में शिवसागर रामगुलाम मॉरीशस लौटे और वहां के मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष छेड़ दिया। उन्होंने मॉरीशस लेबर पार्टी की स्थापना में अहम भूमिका निभाई और 1940 से 1953 के बीच कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।
12 मार्च 1968 को मॉरीशस को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, और शिवसागर रामगुलाम को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें मॉरीशस का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। उनके कार्यकाल में सरकार ने शिक्षा को मुफ्त करने की पहल की, जिससे मॉरीशस की जनता को एक नई दिशा मिली।

नवीनचंद्र रामगुलाम: अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया
शिवसागर रामगुलाम के बाद उनके बेटे नवीनचंद्र रामगुलाम ने राजनीतिक जिम्मेदारी संभाली। वे 1995-2000, 2005-2014 और अब 2024 में तीसरी बार मॉरीशस के प्रधानमंत्री बने हैं। रामगुलाम परिवार का मॉरीशस की राजनीति में एक विशेष स्थान है और वे देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत-मॉरीशस के सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध
मॉरीशस में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं। यहां की लगभग 70% आबादी भारतीय मूल की है, और भोजपुरी भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। हिंदू धर्म को मानने वाले लगभग 50% हैं, जबकि 32% ईसाई और 15% मुस्लिम आबादी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा भारत और मॉरीशस के बीच ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को और गहरा करने का अवसर है। दोनों देशों के बीच व्यापार, पर्यटन, शिक्षा और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती देने के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है।