पाकिस्तान: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने हाल ही में पाकिस्तान को दो महत्वपूर्ण पद सौंपे हैं—1988 तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और 1373 आतंकवाद निरोधक समिति (Counter-Terrorism Committee – CTC) का उपाध्यक्ष। इन समितियों की जिम्मेदारी है कि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों, संगठनों और संस्थाओं के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लागू करें, जिनमें आर्थिक संपत्ति फ्रीज करना, हथियारों की आपूर्ति रोकना और यात्रा प्रतिबंध लगाना जैसे कदम शामिल हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आतंकवाद को संरक्षण देने वाले पाकिस्तान को इस जिम्मेदारी का क्या औचित्य है, और भारत इस स्थिति से कैसे निपटेगा?

पाकिस्तान को मिली सीमित जिम्मेदारी
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ने UNSC की चार प्रमुख समितियों की अध्यक्षता की मांग की थी:
- 1267 अल-कायदा प्रतिबंध समिति
- 1540 अप्रसार समिति
- 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति
- 1373 आतंकवाद निरोधक समिति (CTC)
UNSC ने इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया और पाकिस्तान को केवल 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता दी गई, जबकि CTC में उपाध्यक्ष के रूप में नामित किया गया, जो अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली पद माना जा रहा है।
नाम की अधिक, प्रभाव की कम जिम्मेदारी
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की यह नियुक्ति उसकी अपेक्षाओं से कहीं कम है। CTC का उपाध्यक्ष पद महज़ सांकेतिक माना जा रहा है, क्योंकि इसके प्रमुख निर्णय अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों के हाथों में होते हैं।
वर्तमान समिति नेतृत्व:
- 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति: अध्यक्ष – पाकिस्तान, उपाध्यक्ष – रूस व गुयाना
- 1373 CTC: अध्यक्ष – अल्जीरिया, उपाध्यक्ष – फ्रांस, रूस, पाकिस्तान
साफ है कि पाकिस्तान की भूमिका सीमित और नियंत्रित रहेगी, लेकिन फिर भी यह स्थिति भारत सहित आतंकवाद से पीड़ित देशों के लिए चिंता का विषय है।

भारत की आपत्तियाँ और रणनीतिक जवाब
भारत लंबे समय से यह तथ्य उजागर करता आया है कि पाकिस्तान राज्य प्रायोजित आतंकवाद का सबसे बड़ा उदाहरण है। UNSC की 1267 प्रतिबंध समिति में नामित 254 आतंकवादियों और 89 संगठनों में से 50 से अधिक पाकिस्तान से जुड़े हैं, जिनमें:
- जैश-ए-मोहम्मद
- लश्कर-ए-तैयबा
- हाफिज सईद, मसूद अजहर जैसे कुख्यात आतंकी शामिल हैं।
ऐसे में आतंकियों को शरण देने वाला देश अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद की निगरानी करने की जिम्मेदारी निभाए, यह दोहरे मापदंड की मिसाल मानी जा रही है।
भारत ने इस निर्णय पर सीधे कोई सार्वजनिक आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक भारत अब अपने रणनीतिक साझेदारों—अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस—के साथ समन्वय बनाकर पाकिस्तान की किसी भी मनमानी को UNSC में नाकाम करेगा।