काठमांडू, नेपाल: नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हजारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए, जहां वे पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की झलक पाने के लिए आतुर दिखे। जैसे ही शाह हवाई अड्डे पहुंचे, भीड़ ने जोरदार नारों के साथ उनका स्वागत किया। उपस्थित समर्थकों ने ‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’ और ‘जय पशुपतिनाथ, हाम्रो राजालाई स्वागत छ’ जैसे नारे लगाकर नेपाल में फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग को बल दिया।
पूर्व राजा की वापसी और राजनीतिक अटकलें
नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह, जो हाल ही में पर्यटन स्थल पोखरा में दो महीने बिताकर लौटे हैं, उनकी राजनीतिक वापसी को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। पोखरा प्रवास के दौरान उन्होंने कई मंदिरों और तीर्थ स्थलों के दर्शन किए और जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने विभिन्न समुदायों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं भी सुनीं, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वे सक्रिय भूमिका निभाने की योजना बना रहे हैं।

नेपाल में राजशाही के समर्थन में बढ़ता रुझान
नेपाल 2008 तक दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था और वहां राजशाही शासन था। हालांकि, माओवादी आंदोलन और वामपंथी क्रांति के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। लेकिन बीते कुछ वर्षों से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, महंगाई और प्रशासनिक विफलताओं ने जनता को फिर से पुराने शासन की ओर देखने के लिए मजबूर कर दिया है।
राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी (RPP) का समर्थन
नेपाल में राजशाही समर्थकों को राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी (RPP) का समर्थन मिल रहा है। RPP ने हमेशा नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की मांग की है। 2008 में इस पार्टी ने संविधान सभा में 8 सीटें जीती थीं, 2013 में 13 सीटें, 2017 में 1 सीट तक सिमट गई, लेकिन 2022 के चुनावों में 14 सीटों के साथ वापसी की।
राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रविंद्र मिश्रा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “नेपाल में मौजूदा शासन प्रणाली से जनता का मोहभंग हो चुका है। लोग 2008 से पहले के दिनों को याद कर रहे हैं। अब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र किसी विलेन की तरह नहीं देखे जाते, बल्कि एक संभावित नेतृत्व के रूप में देखे जा रहे हैं।”
पूर्व राजा के स्वागत में विशाल जनसमूह
जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह काठमांडू लौटे, तो एयरपोर्ट पर RPP के वरिष्ठ नेताओं सहित हजारों समर्थकों ने उनका स्वागत किया। एयरपोर्ट से उनके निवास ‘निर्मल निवास’ तक का सफर लगभग ढाई घंटे का रहा, जिसमें सड़क किनारे खड़े लोगों ने राजशाही की बहाली के समर्थन में नारेबाजी की।
रैली में शामिल कुलराज श्रेष्ठ नामक बढ़ई, जो 16 साल पहले राजशाही विरोधी आंदोलन का हिस्सा थे, ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वे अब अपनी सोच बदल चुके हैं। उन्होंने कहा, “हमें लगा था कि लोकतंत्र आने से स्थिति सुधरेगी, लेकिन हालात पहले से भी बदतर हो गए। इसलिए अब हम राजशाही की वापसी चाहते हैं।”
इसी तरह, राजेंद्र कुंवर नामक व्यक्ति ने कहा कि नेपाल में अस्थिरता, महंगाई, और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति के कारण वे अब राजशाही का समर्थन कर रहे हैं।
नेपाल में 2008 के बाद से 13 सरकारें बदलीं
नेपाल में लोकतंत्र बहाली के बाद से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। 2008 के बाद से अब तक नेपाल में 13 बार सरकारें बदली हैं। नेपाल में शासन परिवर्तन के लिए किए गए संघर्ष में करीब 16,000 लोगों की जान गई थी। इसके बावजूद, 2022 की जनगणना के अनुसार नेपाल की 81.19 प्रतिशत जनता हिंदू है और बड़ी संख्या में लोग फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं।

क्या नेपाल में राजशाही की वापसी संभव है?
नेपाल में ‘राजा आओ, देश बचाओ’ के नारे लगाए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार बिना संसदीय समर्थन के ऐसा संभव नहीं है। नेपाल के प्रमुख अखबार ‘कांतिपुर’ के संपादक उमेश चौहान का मानना है कि जनता मौजूदा सरकार से निराश जरूर है, लेकिन यह असंतोष राजशाही की बहाली की ओर जाएगा, यह कहना जल्दबाजी होगी।
नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रंजीत राय भी मानते हैं कि नेपाल की जनता मौजूदा हालात से निराश है, लेकिन राजशाही इसका समाधान होगी, इसमें संदेह है। वे कहते हैं, “राजशाही के समर्थन में अभी उतनी मजबूत लहर नहीं है कि इसे गंभीर चुनौती के रूप में देखा जाए।”
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की प्रतिक्रिया
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को राजनीति में मुख्यधारा में आने की चुनौती दी है। उन्होंने कहा, “अगर वे राजनीति में आना चाहते हैं, तो चुनाव लड़कर दिखाएं। वे देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं, जो अस्थिरता को जन्म देगा।”
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की रणनीति
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह नेपाल में बढ़ते जनसमर्थन को देखते हुए फिलहाल राजनीतिक बयानबाजी से बच रहे हैं। हालांकि, उनकी सार्वजनिक उपस्थिति बढ़ी है और उन्होंने हाल ही में कई मंदिरों व धार्मिक स्थलों के दर्शन किए हैं।
गौरतलब है कि ज्ञानेंद्र शाह 2002 में नेपाल के राजा बने थे, जब उनके भाई और परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या महल में कर दी गई थी। 2006 के जनआंदोलन और माओवादी विद्रोह के बाद उन्होंने सत्ता छोड़ दी और 2008 में नेपाल को औपचारिक रूप से गणराज्य घोषित कर दिया गया।