नेताजी सुभाष चंद्र बोस: भारतीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में 1943 में प्रधानमंत्री की शपथ ली थी। चीन ने भी इस अस्थायी सरकार को मान्यता दी थी।
कंगना रनौत और नेताजी बोस के बयान पर विवाद
मंडी से भाजपा प्रत्याशी और अभिनेत्री कंगना रनौत ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि जवाहरलाल नेहरू नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश के पहले प्रधानमंत्री थे। इस बयान को नेताजी बोस के पोते चंद्र कुमार बेस ने विरासत से छेड़छाड़ बताया है और इसकी कड़ी निंदा की है।
इस बीच आइए जानते हैं कि कंगना रनौत ने किस आधार पर नेताजी बोस को देश का पहला प्रधानमंत्री बताया था।
नेताजी बोस और आजाद हिंद फौज
नेताजी बोस ने 1943 में स्थापित निर्वासित सरकार का हवाला देते हुए अपने दावों को बल दिया था। इस सरकार के पास अपनी फौज, बैंक, मुद्रा, डाक टिकट, गुप्तचर विभाग और रेडियो स्टेशन भी था। नेताजी बोस ही इस सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे।
उन्होंने जापान के नियंत्रण वाले सिंगापुर में एक समारोह में आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी थी। यहीं से उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया था।
आजाद हिंद सरकार की मान्यता
नेताजी बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद नाम से अस्थायी सरकार बनाई थी। इस सरकार को जापान के अलावा जर्मनी, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी थी। आजाद हिंद के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से नेताजी बोस आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री बने थे।
आजाद हिन्द फौज के तथ्य की जानकारी
अमेरीका द्वारा 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराए जाने के बाद, जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद, आजाद हिन्द फौज के सामने भी बड़ी मुश्किलें आ गईं। फौज ने अंत में आत्मसमर्पण कर दिया और उसके बाद सैनिकों पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे के चलते, अंग्रेजों के कदम का उलटा असर देखा गया। लोगों में क्रांति की आग धधक उठी और जब यह मुकदमा चला, तब भारतीय सेना ने ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया। इतिहासकार इस मुकदमे को नौसैनिक विद्रोह के रूप में जानते हैं, जो ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में अंतिम कील के रूप में उभरा। अंग्रेजों को इससे समझ आ गया कि वे राजनीति और कूटनीति के बल पर ज्यादा देर शासन नहीं कर सकते थे।
इसके बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वाधीन करने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद, 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और ब्रिटिश साम्राज्य से अधिकतम हिस्सा अलग हो गया।