नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हाल ही में ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’ शीर्षक से एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को एक चिट्ठी लिखकर मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग को बंद करने की अपील की है।
रिपोर्ट में 11 अध्याय शामिल
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में 11 अध्याय हैं, जिनमें मदरसों के इतिहास और बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका का विस्तार से उल्लेख किया गया है। आयोग के प्रमुख प्रियांक कनूनगो ने कहा, “शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 के तहत सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को प्राप्त किया जा सके।”
मदरसों के फंडिंग पर सवाल उठाते हुए आयोग ने कहा
कनूनगो ने आगे बताया कि रिपोर्ट में मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग को बंद करने की सिफारिश की गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल बोर्ड का गठन करने या यूडीआईएसई कोर्ड लेने से यह साबित नहीं होता कि मदरसा आरटीई अधिनियम 2009 के प्रावधानों का पालन कर रहा है। इसलिए, आयोग ने सिफारिश की कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मदरसों को राज्य वित्त पोषण बंद कर दिया जाना चाहिए।
आरटीई अधिनियम का पालन आवश्यक
आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को आरटीई अधिनियम 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर निकाला जाए और उन्हें सरकारी स्कूलों में भेजा जाए। इस सिफारिश से यह संकेत मिलता है कि आयोग बच्चों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए गंभीर है और किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध करता है