Friday, November 22, 2024
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दिल्ली हाई कोर्ट: प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश राजद्रोह के समान, गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाना स्वीकार्य नहीं

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश रचना राजद्रोह के समान है और बिना पुख्ता सबूतों के ऐसे आरोप नहीं लगाए जा सकते। यह टिप्पणी बीजद सांसद पिनाकी मिश्रा द्वारा वकील जय अनंत देहाद्राई के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे की सुनवाई के दौरान की गई थी।

मिश्रा ने देहाद्राई पर उनके ऊपर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाने और उन्हें अपमानजनक शब्दों से बुलाने का आरोप लगाया था। देहाद्राई ने आरोप लगाया था कि मिश्रा ने प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश रची थी।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि सीबीआई पहले से ही देहाद्राई द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कर रही है। अदालत ने यह भी कहा कि देहाद्राई के वकील ने आश्वासन दिया है कि वे अगली सुनवाई तक प्रधानमंत्री के खिलाफ आपराधिक साजिश में मिश्रा के शामिल होने का आरोप नहीं लगाएंगे।

हालांकि, देहाद्राई ने कहा कि उनके पास मिश्रा के खिलाफ आरोपों के समर्थन में पर्याप्त सबूत हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने ये सबूत सीबीआई को सौंप दिए हैं।

सुनवाई के दौरान, अदालत ने देहाद्राई के उन बयानों पर नाराजगी व्यक्त की जिनमें उन्होंने पीएम के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “आप ऐसा नहीं कर सकते। आपने जो लिखा है, उससे पता चलता है कि साजिश रची गई थी और भाषण प्रायोजित किए गए थे। आप ये सब नहीं कह सकते।”

उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश देश के खिलाफ अपराध है।”

न्यायमूर्ति सिंह ने यह भी कहा कि देहाद्राई के आरोपों का मिश्रा की पार्टी, बीजद के भाजपा के साथ वैचारिक गठबंधन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

अदालत ने देहाद्राई के वकील को यह भी बताया कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ साजिश के आरोपों का आम जनता पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को तय की है।

विश्लेषण:

दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करती है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश के आरोपों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। ऐसे आरोपों को केवल पुख्ता सबूतों के आधार पर ही लगाया जाना चाहिए।

यह टिप्पणी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानहानि के कानूनों के बीच संतुलन को भी बनाए रखती है। अदालत ने कहा कि देहाद्राई को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन उन्हें ऐसा बिना सबूतों के नहीं करना चाहिए जिससे मिश्रा की प्रतिष्ठा को नुकसान हो।

यह मामला राजनीतिक आरोपों और कानूनी प्रक्रिया के बीच की रेखा को भी रेखांकित करता है। अदालत ने कहा कि सीबीआई पहले से ही आरोपों की जांच कर रही है और देहाद्राई को कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

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