इलेक्ट्रिक वाहन खरीदारों को चार्जिंग, लागत और नीति में देरी से हो रही परेशानी
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली को इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) की राजधानी बनाने की दिशा में सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘ईवी नीति-दो’ का खाका तैयार किया है। लेकिन इस नीति के कार्यान्वयन में हो रही देरी से सरकार के लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। तीन महीने से लटकी इस नीति को लेकर जहां आम जनता उम्मीद लगाए बैठी है, वहीं ईवी वाहन चालकों को चार्जिंग सुविधाओं की कमी, उच्च लागत और आधारभूत संरचना की अपर्याप्तता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

क्या बढ़ेगी ईवी वाहनों की बिक्री?
ईवी नीति-दो में इलेक्ट्रिक वाहनों को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। इनमें बैटरी स्वैपिंग तकनीक को बढ़ावा देना, चार्जिंग स्टेशनों की संख्या में इजाफा, वाहन खरीद पर सब्सिडी और करों में छूट जैसे लाभ शामिल हैं। नीति का उद्देश्य दिल्लीवासियों को ईवी की ओर आकर्षित करना है ताकि पंजीकरण में तेज़ी लाई जा सके।
बैटरी स्वैपिंग तकनीक के तहत केवल पांच मिनट में पूरी चार्ज की हुई बैटरी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे चार्जिंग का समय घट जाता है। यह व्यवस्था खासतौर पर व्यावसायिक वाहनों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है। लेकिन जब तक यह नीति पूरी तरह से लागू नहीं होती, तब तक यह केवल एक योजना मात्र बनी रहेगी।
क्यों नहीं बढ़ रही ईवी की मांग?
नीति के अमल में तीन महीने की देरी ने उपभोक्ताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। एक ओर जहां पेट्रोल और सीएनजी वाहन अभी भी अपेक्षाकृत सस्ते विकल्प बने हुए हैं, वहीं इलेक्ट्रिक वाहन महंगे साबित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर एक सामान्य ऑटो चालक रोज़ाना 200 रुपये में सीएनजी भरवाकर अपना वाहन चला लेता है, जबकि इलेक्ट्रिक ऑटो को चार्ज करने पर लगभग 325 रुपये का खर्च आ रहा है।
चार्जिंग स्टेशन की अनुपलब्धता और लंबा चार्जिंग समय भी ईवी चालकों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। औसतन एक ईवी वाहन को चार्ज होने में दो से तीन घंटे का समय लगता है। इसके अतिरिक्त, चार्जिंग पॉइंट की अनुपलब्धता के चलते वाहन की बैटरी 30% होने पर ही चालक चार्जिंग स्टेशन ढूंढने निकल पड़ते हैं, जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है।

आवासीय क्षेत्रों में चार्जिंग की समस्या
व्यावसायिक वाहन चालकों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि वे अपने घरों पर वाहन चार्ज नहीं कर सकते। दिल्ली के कई इलाकों की गलियां इतनी तंग हैं कि वाहन अंदर ले जाना असंभव है। वहीं, जिनके पास घर नहीं है या किराए पर रह रहे हैं, उनके लिए चार्जिंग व्यवस्था स्थापित करना और भी मुश्किल है। चार्जिंग के लिए घरेलू मीटर के बजाय व्यावसायिक मीटर की आवश्यकता होती है, जो अतिरिक्त खर्च बढ़ाता है।
योजना बनी, मगर क्रियान्वयन अधूरा
दिल्ली सरकार ने बीते वर्ष 5000 ई-ऑटो सड़कों पर उतारने की योजना बनाई थी। लेकिन वास्तविकता यह रही कि केवल 1400 ऑटो चालकों ने ही इस योजना में भाग लिया। शेष 3600 परमिट कंपनियों को जारी करने पड़े। इससे स्पष्ट होता है कि वाहन चालक ईवी अपनाने को लेकर गंभीर तो हैं, परन्तु वर्तमान हालात और ढांचागत कमजोरियां उन्हें निर्णय लेने से रोक रही हैं।