Saturday, June 21, 2025
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डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के 100 दिन: विश्व व्यवस्था में अभूतपूर्व उथल-पुथल

अमेरिका: राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे कर लिए हैं। इस अवधि में ट्रंप ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह अमेरिकी नीतियों और वैश्विक व्यवस्था में व्यापक और गहरे बदलाव लाने के इरादे से काम कर रहे हैं। उनके फैसलों ने न केवल अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों को असहज किया है, बल्कि विरोधियों को भी नई रणनीति अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने इस कार्यकाल में अब तक कई ऐसे कदम उठाए हैं जो वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुके हैं। इनमें अभूतपूर्व टैरिफ युद्ध छेड़ना, अमेरिका की विदेशी सहायता में कटौती, नाटो सहयोगियों की खुली आलोचना, यूक्रेन पर रूसी दृष्टिकोण को समर्थन, ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाने का प्रयास, पनामा नहर को पुनः प्राप्त करने की इच्छा, और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की अभिलाषा जैसी पहलें शामिल हैं।

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नियम-आधारित विश्व व्यवस्था को झटका

ट्रंप के फैसलों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित नियम-आधारित विश्व व्यवस्था के कई स्तंभों को हिला दिया है। उनकी अराजक नीतियों ने पुराने समझौतों और वैश्विक सहयोग की अवधारणा को गहरी चोट पहुंचाई है।

पूर्व अमेरिकी राजनयिक इलियट अब्राम्स का कहना है, “ट्रंप अब आठ वर्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक कट्टरपंथी हो गए हैं। मैं उनकी इस तेजी से बढ़ती कट्टरता को देखकर हैरान हूं।” अब्राम्स पूर्व में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और जार्ज डब्ल्यू. बुश के प्रशासन में भी सेवाएं दे चुके हैं।

‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा से सहयोगी देशों में निराशा

ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे ने अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया है और वैश्विक मंच पर विरोधियों को नई ऊर्जा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का यह रुख सहयोगियों को अमेरिका से दूर कर रहा है और वैश्विक सत्ता संतुलन को अस्थिर कर रहा है।

पूर्व वार्ताकार डेनिस रास ने चेताया, “इस समय वैश्विक मंच पर जो व्यवधान हम देख रहे हैं, वह अभूतपूर्व है। किसी को भी ठीक से नहीं पता कि इसका आगे क्या प्रभाव पड़ेगा।”

ट्रंप के कार्यों से वैश्विक बेचैनी

रॉयटर्स द्वारा वाशिंगटन और अन्य वैश्विक राजधानियों में किए गए एक व्यापक सर्वेक्षण से पता चलता है कि ट्रंप की नीतियों के चलते कई देश अब अमेरिका पर अपनी पारंपरिक निर्भरता को समाप्त करने की ओर बढ़ रहे हैं।

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यूरोपीय सहयोगी देशों ने अमेरिका पर अपनी रक्षा जरूरतों के लिए निर्भरता घटाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। अपने स्वयं के रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की रणनीति पर काम शुरू हो चुका है। दूसरी ओर, दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियार कार्यक्रम को लेकर नई बहस छिड़ गई है।

चीन के करीब खिसक सकते हैं अमेरिकी साझेदार

विश्लेषकों का मानना है कि बिगड़ते अमेरिकी संबंधों के चलते कई अमेरिकी सहयोगी अब आर्थिक दृष्टिकोण से चीन के निकट जाने पर विचार कर सकते हैं। यह परिदृश्य वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों में बड़े बदलाव का संकेत देता है।

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