Sunday, December 21, 2025
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चिड़ावा में मानवता की मिसाल: श्रीराम परिवार ने बेसहारा पशुओं के लिए लगवाए स्थायी चारा पात्र, स्वच्छता और करुणा का संदेश

चिड़ावा: शहर में पशु कल्याण और सामाजिक सरोकारों को मजबूती देते हुए श्रीराम परिवार ने बेसहारा पशुओं के लिए एक सराहनीय पहल की है। संगठन द्वारा पिलानी रोड पर डिप्टी ऑफिस से आगे 10 स्थायी चारा पात्र स्थापित किए गए हैं, जिससे पशुओं को स्वच्छ भोजन मिलेगा और सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी की समस्या भी कम होगी। यह पहल न केवल पशु सेवा का उदाहरण है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का भी संदेश देती है।

श्रीराम परिवार द्वारा लगाए गए ये चारा पात्र विशेष रूप से उन स्थानों पर स्थापित किए गए हैं, जहां बेसहारा पशुओं की आवाजाही अधिक रहती है। संगठन पिछले लगभग छह महीनों से हर रविवार को शहर के अलग-अलग इलाकों में ताजा चारा वितरित कर रहा है। इस दौरान यह महसूस किया गया कि गीली सब्जियां जमीन पर डालने से मिट्टी लग जाती थी, जिसे पशु खाने को मजबूर होते थे, वहीं बचा हुआ चारा कचरा फैलाने का कारण बनता था।

इसी समस्या के स्थायी समाधान के रूप में चारा पात्र लगाने का निर्णय लिया गया। इन पात्रों में चारा डालने से भोजन साफ रहेगा, पशुओं के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता भी बनी रहेगी। यह कदम पशु कल्याण के साथ-साथ शहर की साफ-सफाई को लेकर भी जागरूकता बढ़ाता है।

श्रीराम परिवार ने शहरवासियों से भी अपील की है कि वे बेसहारा पशुओं के लिए चारा इन्हीं निर्धारित चारा पात्रों में डालें। संगठन का मानना है कि यदि आमजन इस पहल में सहयोग करें, तो यह अभियान और अधिक प्रभावी बन सकता है तथा पशुओं को नियमित रूप से सुरक्षित और स्वच्छ भोजन उपलब्ध हो सकेगा।

इस पुनीत कार्य के दौरान संगठन के कई सक्रिय सदस्य मौजूद रहे। कार्यक्रम में अध्यक्ष सुरजीत सैनी, पवन शर्मा नवहाल, सुनील शर्मा, कृष्ण स्वामी और राजेश कुमावत ने सक्रिय भूमिका निभाई। इनके साथ रजनीकांत मिश्रा, मनीष जांगिड, अमित लाटा, धर्मेंद्र वर्मा और अमित चोटिया भी अभियान का हिस्सा रहे। वहीं सत्यनारायण वर्मा (टिल्लू), मनोज शर्मा, मनीष शर्मा और पार्षद शशिकांत कुमावत की उपस्थिति ने इस पहल को और मजबूती दी।

श्रीराम परिवार की यह पहल अन्य सामाजिक संगठनों और नागरिकों के लिए प्रेरणा बन सकती है। पशु सेवा, स्वच्छता और सामूहिक सहभागिता के इस मॉडल को यदि अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया जाए, तो शहरी जीवन में मानवीय संवेदनाओं को और मजबूत किया जा सकता है।

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