इस्लामाबाद: ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के हवाई हमलों के बाद पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति असहज हो गई है। यह हमला ऐसे समय हुआ है जब एक दिन पहले ही पाकिस्तान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भेजने की घोषणा की थी। अब इस फैसले को लेकर पाकिस्तान के अंदर और बाहर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
इस घटनाक्रम के बाद अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों पर भी सवाल उठने लगे हैं, खासकर पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर और ट्रंप के बीच हाल ही में वॉशिंगटन में हुई मुलाकात को लेकर। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका ने हमले से पहले पाकिस्तान को विश्वास में लेकर पहले से ही उसका विरोध शांत करने की रणनीति अपनाई थी।
इस्लामी भाईचारे के दावों के बीच अमेरिका के साथ खड़ा नजर आ रहा पाकिस्तान
ईरान को “इस्लामी भाई” कहने वाला पाकिस्तान अब अमेरिकी सैन्य कार्रवाई पर कोई स्पष्ट बयान देने से बच रहा है। इससे पाकिस्तानी नेतृत्व की दुविधा उजागर हो रही है। पाकिस्तान में एक ओर जहां ट्रंप को शांति का प्रतीक बताया जा रहा था, वहीं अब उसी ट्रंप के नेतृत्व में ईरान जैसे इस्लामिक देश पर हमला हो गया है, जिससे पाकिस्तान की नीति में गहरा विरोधाभास उभरकर सामने आया है।
पाकिस्तान में मीडिया के दावे और विशेषज्ञों की आलोचना
पाकिस्तानी मीडिया ने असीम मुनीर की वॉशिंगटन यात्रा के बाद दावा किया था कि उन्होंने अमेरिका को ईरान पर हमले से रोक दिया है और वे मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन अमेरिका द्वारा सीधे हमले किए जाने के बाद यह दावा अब मजाक बन गया है। भारत के रक्षा विश्लेषक सुशांत सरीन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि पाकिस्तान के नेताओं और मीडिया ने असीम मुनीर को ऐसा प्रस्तुत किया जैसे उन्होंने ट्रंप को मनाकर युद्ध टाल दिया, जबकि हकीकत यह रही कि मुनीर ने शिया शासन के खिलाफ अमेरिका को पूर्ण समर्थन देने का आश्वासन दिया।
पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ बाकिर सज्जाद ने भी वर्तमान स्थिति को पाकिस्तान की कूटनीतिक असमर्थता करार देते हुए लिखा कि पाकिस्तान अब जिस नेता को शांति का दूत बताकर नोबेल पुरस्कार दिलाने की बात कर रहा था, उसके द्वारा युद्ध की शुरुआत हो जाने के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहा है।
अमेरिकी हमले को बताया उकसावे की कार्रवाई
पाकिस्तानी विशेषज्ञों और कुछ अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने इस हमले को असंवैधानिक और परमाणु टकराव को न्योता देने वाला बताया है। बाकिर सज्जाद ने कहा कि कुछ दिन पहले ही जब अमेरिका ने कूटनीति को मौका देने की बात की थी, तो अब उसी देश द्वारा अचानक से हमला करना गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने इसे शांति स्थापना नहीं बल्कि उकसावे की कार्रवाई कहा।
निष्कर्ष: पाकिस्तान की रणनीतिक चुप्पी और आंतरिक विरोधाभास
ईरान पर अमेरिकी हमले ने पाकिस्तान को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है, जहां वह न तो अपने “इस्लामी भाईचारे” को ठुकरा सकता है, और न ही अमेरिका जैसे रणनीतिक साझेदार से दूरी बना सकता है। इस बीच असीम मुनीर की वॉशिंगटन यात्रा और ट्रंप को नोबेल के लिए भेजी गई सिफारिश पाकिस्तान की कूटनीतिक सोच और मीडिया प्रचार की कमजोरी को उजागर कर रही है। आने वाले दिनों में पाकिस्तान किस दिशा में रुख करता है, इस पर पूरी दुनिया की निगाह टिकी हुई है।