Friday, June 20, 2025
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केंद्र सरकार के ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव पर जेपीसी की पहली बैठक संपन्न

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किए गए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव पर चर्चा के लिए गठित 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की पहली बैठक बुधवार को संपन्न हुई। इस बैठक में समिति के 37 सदस्य उपस्थित रहे। बैठक का उद्देश्य संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश विधि (संशोधन) विधेयक पर चर्चा करना था, जिन्हें हाल ही में लोकसभा में पेश किया गया है। बैठक में विधेयक के प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की गई और इसे लागू करने से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ।

पीपी चौधरी की अध्यक्षता में बैठक

इस संयुक्त संसदीय समिति की अध्यक्षता पूर्व कानून राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद पीपी चौधरी ने की। समिति में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल हैं, जिनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, जनता दल (यू) के संजय झा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी प्रमुख रूप से शामिल हैं।

बैठक में केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से लगभग 18 हजार पृष्ठों का एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया गया। इसके माध्यम से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के कानूनी और संवैधानिक पहलुओं को रेखांकित किया गया।

विपक्षी दलों ने किया विरोध

जेपीसी की बैठक में विपक्षी सांसदों ने प्रस्तावित विधेयक पर कड़ा विरोध जताया। समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने इसे संविधान की भावना के विरुद्ध बताते हुए कहा कि यह क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने की साजिश है। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने सवाल उठाया कि क्या खर्चों में कमी करना अधिक महत्वपूर्ण है या लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी और मुकुल वासनिक ने भी विधेयक का विरोध करते हुए इसे संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ बताया।

बैठक में शामिल नहीं हुए दो सदस्य

लोजपा की सांसद शांभवी चौधरी और बीजेपी सांसद सीएम रमेश व्यक्तिगत कारणों से बैठक में शामिल नहीं हो सके। दोनों ने अपनी अनुपस्थिति की सूचना पहले ही चेयरमैन को दे दी थी।

क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य

इस विधेयक का उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करना है, जिससे चुनावी खर्च में कमी और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार हो सके। प्रस्तावित कानून के समर्थकों का मानना है कि इससे विकास कार्यों में आने वाली बाधाएं कम होंगी और संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग होगा।

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