Friday, November 22, 2024
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कांवड़ यात्रा रूट पर सभी दुकानों पर मालिक का नाम अनिवार्य, योगी सरकार के फैसले का रामदेव ने किया समर्थन, जानिए क्या बोले?

लखनऊ, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ रूट पर स्थित सभी दुकानों और ढाबों पर मालिक का नाम और पता लिखने का आदेश जारी किया है। इस आदेश के बाद राज्य में राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है और इसके समर्थन और विरोध में बयानबाजी का दौर चल पड़ा है।

योग गुरु स्वामी रामदेव का समर्थन

योग गुरु स्वामी रामदेव ने इस आदेश का समर्थन करते हुए कहा, “जब स्वामी रामदेव को अपना नाम छुपाने की कोई जरूरत नहीं है, अपना परिचय देने में कोई दिक्कत नहीं है, तो फिर रहमान को अपना परिचय बताने में क्यों दिक्कत है।” स्वामी रामदेव ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और कांवड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। उन्होंने यह भी कहा कि कांवड़ियों को नशे का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि शिव ने नशा छुड़ाने का संदेश दिया है।

उत्तराखंड सरकार की सराहना

स्वामी रामदेव ने उत्तराखंड सरकार की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि चार धामों के पेटेंट का प्रस्ताव कैबिनेट में पारित किया गया है, जो स्वागत योग्य है। पौराणिक मंदिरों और तीर्थ स्थलों की प्रतिकृति नहीं बनाई जा सकती, यह एक सही कदम है।

विपक्ष का विरोध

दूसरी तरफ कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने इस नियम का विरोध किया है। विपक्ष का कहना है कि पहले भी कांवड़ यात्राएं होती रही हैं, लेकिन इस तरह के नियम लाकर राज्य सरकार विशेष वर्ग को निशाना बना रही है। विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल यूनाइटेड और लोजपा (आर) ने भी योगी सरकार के इस फैसले को गैर-जरूरी बताया है।

मुजफ्फरनगर के बाद पूरे प्रदेश में लागू

कांवड़ यात्रा को लेकर सबसे पहले मुजफ्फरनगर में डीआईजी ने आदेश दिया था कि कांवड़ रूट पर मौजूद दुकानों के मालिक का नाम लिखा जाएगा। इसके बाद सियासी घमासान शुरू हो गया। जब इस मामले पर विवाद बढ़ा तो उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश जारी किया कि अब पूरे प्रदेश में नेम प्लेट का यह आदेश लागू होगा। इसके तहत कांवड़ रूट पर खाने-पीने की दुकानों पर मालिक का नाम और पता अनिवार्य होगा।

समर्थन और विरोध के बीच विचारणीय बिंदु

यह आदेश समाज में पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है, लेकिन इसके राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ भी गहरे हैं। विपक्ष इसे एक विशेष वर्ग को निशाना बनाने का आरोप लगा रहा है, जबकि समर्थक इसे सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए आवश्यक कदम बता रहे हैं।

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