त्रिवेंद्रम, 17 जून: इंग्लैंड की रॉयल नेवी के एडवांस्ड एफ-35बी (लाइटनिंग) फाइटर जेट ने केरल के त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट पर आपातकालीन स्थिति में लैंडिंग की। यह घटना तकनीकी दृष्टिकोण से जितनी अहम है, उतनी ही सामरिक सोच को चुनौती देने वाली भी मानी जा रही है। इस आपात लैंडिंग ने उस स्टील्थ तकनीक की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है, जिसे अमेरिका और इंग्लैंड ने मिलकर तैयार किया है और जिसे रडार से अदृश्य बताया जाता रहा है।
भारतीय वायुसेना ने इस मामले में खुलासा किया है कि त्रिवेंद्रम की ओर आते समय एफ-35बी को देश के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) ने ट्रैक किया और पहचान भी कर ली। यह वही प्रणाली है जो पहले पाकिस्तान के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी संभावित हवाई हमलों को विफल करने में सफल रही थी। यह डिटेक्शन दर्शाता है कि भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली अब इतनी विकसित हो चुकी है कि वह स्टील्थ लड़ाकू विमानों को भी आसानी से पकड़ सकती है।
जानकारी के अनुसार, एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ के साथ अरब सागर में तैनात एफ-35बी फाइटर जेट शनिवार देर रात अपने एयरक्राफ्ट कैरियर पर लैंडिंग में विफल रहा। इसके बाद पायलट ने इमरजेंसी डायवर्जन लिया और त्रिवेंद्रम की ओर उड़ान भरी। जैसे ही वह भारत के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के करीब पहुंचा, भारतीय वायुसेना की निगरानी प्रणाली ने उसे पहचान लिया और एक सुखोई फाइटर जेट को तुरंत रवाना किया गया।
संपर्क में आने के बाद एफ-35 के पायलट ने तकनीकी समस्या का हवाला दिया, जिसके बाद उसे आपात लैंडिंग की अनुमति दी गई। एयरफोर्स ने बाद में जानकारी दी कि विमान को आवश्यक तकनीकी सहयोग प्रदान किया जा रहा है ताकि वह अपने एयरक्राफ्ट कैरियर पर लौट सके।
एफ-35बी को दुनिया की सबसे उन्नत लड़ाकू तकनीकों में शुमार किया जाता है। इसका रडार क्रॉस सेक्शन बेहद कम होता है, जिसे इसकी अदृश्यता का आधार माना जाता है। इसकी संरचना इस प्रकार तैयार की गई है कि इसके इंजन, टरबाइन और हथियार तक बाहरी रडार की पकड़ से बाहर रहें। इसके मिसाइल और हथियार विमान के अंदर की ओर इंटीग्रेट किए जाते हैं, जो रडार सिग्नेचर को कम करने में मदद करते हैं।
हालांकि इस घटना ने एक नई बहस को जन्म दिया है। दो दिन पहले ही दसॉल्ट एविएशन के प्रमुख एरिक ट्रैपियर ने राफेल को एफ-35 और चीन के फाइटर विमानों से बेहतर बताया था। अब भारत के IACCS सिस्टम द्वारा एफ-35 को डिटेक्ट किए जाने की घटना ने यह संकेत दिया है कि भारत की रक्षा प्रणाली किसी भी उन्नत तकनीक से पीछे नहीं है और वह वैश्विक रक्षा तकनीकों को टक्कर देने में सक्षम है।
यह घटना न केवल सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की बढ़ती रक्षा क्षमताओं की एक बड़ी उपलब्धि भी है।