Wednesday, December 10, 2025
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अहमदाबाद विमान हादसे के बाद हवाई यात्रियों में दिखा नया रुझान, उड़ानों में होने लगा सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ

अहमदाबाद: हाल ही में अहमदाबाद में हुई एक भीषण विमान दुर्घटना ने पूरे देश को गहरे शोक में डाल दिया है। यह हादसा न केवल एक मानवीय त्रासदी के रूप में सामने आया, बल्कि इसने हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों के मनोविज्ञान और व्यवहार में भी अप्रत्याशित बदलाव ला दिया है। अब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में यात्रियों के बीच एक नया चलन उभर रहा है, जिसमें रात के समय, जब केबिन की लाइट्स बंद होती हैं, तब सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा है। यह पहल यात्रियों में आत्मविश्वास, सुरक्षा और मानसिक शांति को बढ़ावा दे रही है।

गत गुरुवार को सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लंदन के लिए रवाना हुआ एक विमान टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद नजदीकी मेडिकल कॉलेज परिसर की इमारत से टकरा गया। इस दर्दनाक हादसे में विमान में सवार 242 यात्रियों में से 241 की मृत्यु हो गई, जबकि आसपास की इमारत में मौजूद कई अन्य लोग भी इस दुर्घटना की चपेट में आ गए। मृतकों में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी का नाम भी शामिल है। दुर्घटना ने ना केवल गुजरात, बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया और हवाई यात्रा की सुरक्षा पर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं।

इस ह्रदयविदारक घटना के बाद यात्रियों में भय और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है। इसी कारण अब कई अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में यात्री धार्मिक और आध्यात्मिक माध्यमों से शांति और सुरक्षा की भावना प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। हनुमान चालीसा का पाठ रात की उड़ानों में एक आम दृश्य बनता जा रहा है। इस सामूहिक पाठ में लोग स्वेच्छा से भाग ले रहे हैं, जिससे केबिन में एकजुटता और सामूहिक विश्वास की भावना देखी जा रही है।

यात्रियों का मानना है कि यह आध्यात्मिक उपाय उन्हें मानसिक रूप से स्थिर रखने और यात्रा के दौरान भय को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस रुझान की चर्चा भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हो रही है, जहां भारतीय मूल के यात्री अपनी आस्था के माध्यम से सुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की सामाजिक-धार्मिक गतिविधियां समूह में डर और तनाव को कम करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं। हालांकि, विमानन कंपनियां इस पहल को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दे रही हैं, लेकिन यात्रियों द्वारा इस पहल को सहज रूप से अपनाया जा रहा है। यह नया चलन बताता है कि भय के माहौल में भी समाज किस प्रकार एकजुट होकर अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के सहारे मानसिक संतुलन बनाए रखता है।

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