अजमेर, राजस्थान: अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर हाल ही में एक विवाद उत्पन्न हुआ है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने इस दरगाह को भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग को लेकर दीवानी न्यायाधीश की अदालत में याचिका दायर की है। यह याचिका विशेष रूप से विवादास्पद रही है, और अब इस मुद्दे पर एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
ओवैसी ने उठाए सवाल
असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा है कि अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि यह दरगाह एक मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है। उन्होंने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दरगाह को भारतीय मुसलमानों के लिए एक मार्गदर्शक स्थल बताया। ओवैसी ने कहा, “ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारतीय मुसलमानों के लिए आध्यात्मिक प्रकाश बने हुए हैं, और उनकी दरगाह मुसलमानों के लिए सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगहों में से एक है।”
उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से सवाल करते हुए पूछा कि इस मुद्दे पर सरकार और अल्पसंख्यक मंत्रालय का क्या रुख है। ओवैसी ने पूछा कि क्या सरकार 1955 के दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम और 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का समर्थन करेगी और उन्हें लागू करेगी?
किरेन रिजिजू से ओवैसी के सवाल
ओवैसी ने अपने पोस्ट में किरेन रिजिजू से यह भी पूछा कि क्या मोदी सरकार द्वारा लाए गए वक्फ विधेयक के तहत दरगाह और अन्य धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि वक्फ विधेयक धार्मिक स्थलों को अतिक्रमण और अपवित्रता के लिए असुरक्षित बना सकता है।
उन्होंने कहा, “1955 के दरगाह अधिनियम के तहत एक लोक सेवक मोदी सरकार के वक्फ विधेयक की प्रशंसा कर रहा है। इस मुकदमे पर उनका क्या रुख है?”
विष्णु गुप्ता की याचिका और मामले का विवरण
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपने वकील के माध्यम से दीवानी न्यायाधीश की अदालत में याचिका दायर की। याचिका में दावा किया गया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह संकटमोचन महादेव मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि 1955 के अधिनियम को निरस्त कर हिंदुओं को उस स्थल पर पूजा का अधिकार दिया जाए।
विष्णु गुप्ता के वकील शशिरंजन ने बताया कि वादी ने दो साल का शोध किया है, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि दरगाह स्थल पर पहले एक शिव मंदिर था, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। वकील के अनुसार, न्यायालय ने कहा है कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है और मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को की जाएगी।